मालाणी कहे जाने वाले बाड़मेर के बालोतरा क्षेत्र में सदियों पूर्व एक परम्परा के तौर पर शुरू हुए तिलवाड़ा पशु मेले में पुनः उसी परम्परा को वापस जीवित करने की शुरुआत हो रही है। कभी मारवाड़ की गंगा कही जाने वाली लूणी नदी में आयोजित हो रहे पशु मेले में अब इतिहास को पुनः दोहराने की शुरुआत हो रही है. .
अब तिलवाडा में रावल मल्लिनाथ के नाम से होगा कुम्भ,देश भर से अगले वर्ष अनेक सन्त पहुंच कर देंगे समरसता का संदेशजूना अखाड़े सहित कई बड़े सन्तो ने दी अपनी सहमति,
शंकराचार्य श्री नरेन्द्रानंद सरस्वती महाराज काशी सुमेरुपीठ जसोलधाम रावल मल्लिनाथ जी व श्री राणी रूपादे की तपोभूमि पहुंचे। जंहा उन्होंने जसोल धाम में
श्री राणी भटियाणी, मालाजाल व श्री राणी रूपादे पालिया में दर्शन कर राष्ट्र के मंगल की कामना की।
शंकराचार्य श्री नरेन्द्रानंद सरस्वती महाराज ने जसोल धाम में पत्रकार वार्ता कर रावल
मल्लिनाथ जी के नाम से होने वाले सन्त समागम को कुम्भ के नाम से करने की बात कही। उन्होंने
कहा कि भारत सनातन संस्कृति का संवाहक रहा हैं। विश्व शक्ति व एकता का संदेश दिया हैं। उन्होंने
कहा कि जसोलधाम के बदले स्वरूप ने अपने धर्म, संस्कृति, राष्ट्र का उत्कृष्ट विकास, वर्तमान में दिशा
और दशा बदलने का कार्य किया गया। उन्होंने कहा कि रावल मल्लिनाथ जी का इतिहास अद्वितीय,
विलक्षण व अक्षुण रहा हैं। कुम्भ के माध्यम से भारत के लोग एकत्रित होकर समरसता का सन्देश देने
के साथ एकसूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं। उसी के साथ निज धर्म पर चलने का मल्लिनाथ जी के
नाम से मालाणी की मरुधरा में सन्त समागम के मेले का आयोजन किया जाता था। उन्होंने कहा कि
तिलवाड़ा की धरा पर पुनः सन्तोपदेश का समागम होगा उसी के कार्य को लेकर आना हुआ हैं। और
अगले वर्ष मल्लिनाथ जी के मेले को कुम्भ के रूप में जाना जाएगा। जंहा देश भर से सन्त महात्माओं
का आगमन होगा। जो समरसता का संदेश राणी रूपादे व रावल मल्लिनाथ जी ने दिया उसी पंरपरा का
आगाज होगा। श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि
शंकराचार्य जी का आगमन समूचे मालाणी क्षेत्र के लिए पूण्य का परिचायक हैं, आप श्री की तपस्या,
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य जिसका लाभ हमे मिलेगा। उन्होंने कहा कि आपके द्वारा अविरल ज्ञान की गंगा
जो बहाई जा रही हैं। सन्त समागम की श्रृंखला में आप
अब तिलवाडा में रावल मल्लिनाथ के नाम से होगा कुम्भ,देश भर से अगले वर्ष अनेक सन्त पहुंच कर देंगे समरसता का संदेशजूना अखाड़े सहित कई बड़े सन्तो ने दी अपनी सहमति,
शंकराचार्य श्री नरेन्द्रानंद सरस्वती महाराज काशी सुमेरुपीठ जसोलधाम रावल मल्लिनाथ जी व श्री राणी रूपादे की तपोभूमि पहुंचे। जंहा उन्होंने जसोल धाम में
श्री राणी भटियाणी, मालाजाल व श्री राणी रूपादे पालिया में दर्शन कर राष्ट्र के मंगल की कामना की।
शंकराचार्य श्री नरेन्द्रानंद सरस्वती महाराज ने जसोल धाम में पत्रकार वार्ता कर रावल
मल्लिनाथ जी के नाम से होने वाले सन्त समागम को कुम्भ के नाम से करने की बात कही। उन्होंने
कहा कि भारत सनातन संस्कृति का संवाहक रहा हैं। विश्व शक्ति व एकता का संदेश दिया हैं। उन्होंने
कहा कि जसोलधाम के बदले स्वरूप ने अपने धर्म, संस्कृति, राष्ट्र का उत्कृष्ट विकास, वर्तमान में दिशा
और दशा बदलने का कार्य किया गया। उन्होंने कहा कि रावल मल्लिनाथ जी का इतिहास अद्वितीय,
विलक्षण व अक्षुण रहा हैं। कुम्भ के माध्यम से भारत के लोग एकत्रित होकर समरसता का सन्देश देने
के साथ एकसूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं। उसी के साथ निज धर्म पर चलने का मल्लिनाथ जी के
नाम से मालाणी की मरुधरा में सन्त समागम के मेले का आयोजन किया जाता था। उन्होंने कहा कि
तिलवाड़ा की धरा पर पुनः सन्तोपदेश का समागम होगा उसी के कार्य को लेकर आना हुआ हैं। और
अगले वर्ष मल्लिनाथ जी के मेले को कुम्भ के रूप में जाना जाएगा। जंहा देश भर से सन्त महात्माओं
का आगमन होगा। जो समरसता का संदेश राणी रूपादे व रावल मल्लिनाथ जी ने दिया उसी पंरपरा का
आगाज होगा। श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि
शंकराचार्य जी का आगमन समूचे मालाणी क्षेत्र के लिए पूण्य का परिचायक हैं, आप श्री की तपस्या,
भक्ति, ज्ञान और वैराग्य जिसका लाभ हमे मिलेगा। उन्होंने कहा कि आपके द्वारा अविरल ज्ञान की गंगा
जो बहाई जा रही हैं। सन्त समागम की श्रृंखला में आप
का आना व अनेक सन्तो का आना मालाणी
का सौभाग्य हैं। जूना अखाड़ा अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमगिरी जी महाराज ने कहा कि तिलवाड़ा में सात सौ
वर्षों पूर्व सन्तो के समागम से मेला हुआ करता था। लेकिन कालांतर में को किवदंती हुई हैं । जिसके
साथ उसका जो स्वरूप बदलकर पशु मेले में समाहित हुआ है। उन्होंने कहा कि जो पशु मेला चल रहा
हैं। वो चले उसके साथ प्राचीन परम्परा को आगे लाना होगा। जो महापुरुषों व जसोल घराने के पैतृक
वंशजो की परम्परा सन्त समागम की हुआ करती थी उसी को पुनः स्थापित करने को लेकर जसोल राज
घराने के साथ साधु संत जुटेंगे। और रावल मल्लिनाथ जी के नाम से मालाणी क्षेत्र में कुंभ का शुभारंभ
होगा। जंहा समूचे राष्ट्र से सन्त पँहुच कर समरसता का संदेश देंगे। उन्होंने कहा कि पशु मेले के साथ प्राचीन परम्परा को भी आगे लाना होगा।
का सौभाग्य हैं। जूना अखाड़ा अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमगिरी जी महाराज ने कहा कि तिलवाड़ा में सात सौ
वर्षों पूर्व सन्तो के समागम से मेला हुआ करता था। लेकिन कालांतर में को किवदंती हुई हैं । जिसके
साथ उसका जो स्वरूप बदलकर पशु मेले में समाहित हुआ है। उन्होंने कहा कि जो पशु मेला चल रहा
हैं। वो चले उसके साथ प्राचीन परम्परा को आगे लाना होगा। जो महापुरुषों व जसोल घराने के पैतृक
वंशजो की परम्परा सन्त समागम की हुआ करती थी उसी को पुनः स्थापित करने को लेकर जसोल राज
घराने के साथ साधु संत जुटेंगे। और रावल मल्लिनाथ जी के नाम से मालाणी क्षेत्र में कुंभ का शुभारंभ
होगा। जंहा समूचे राष्ट्र से सन्त पँहुच कर समरसता का संदेश देंगे। उन्होंने कहा कि पशु मेले के साथ प्राचीन परम्परा को भी आगे लाना होगा।